Tuesday, February 12, 2008

चंद तनहा है



चंद तनहा है आसमान तनहा
दिल मिल है कहाँ कहाँ तनहा

बुझ गई आस चुप गया तारा
थरथराता रहा दुआं तनहा

ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तनहा है और जान तनहा

हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तनहा तनहा

जलती-बुझती-सी रौशनी के परे
सिमटा-सिमटा-सा एक मकां तनहा

राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे यह जहां तनहा



Meena Kumari

1 comment:

Anonymous said...

what is this???